December 11, 2022
SIP (SystematicInvestment Plan) के द्वारा हम Mutual Funds में इन्वेस्ट कर सकते हैं यह इन्वेस्टमेंट का बहुत ही आसान, सुविधाजनक और समझदारी भरा तरीका है।
SIP क्या है?
SIP (SystematicInvestment Plan) के द्वारा हम Mutual Funds में इन्वेस्ट कर सकते हैं यह इन्वेस्टमेंट का बहुत ही आसान, सुविधाजनक और समझदारी भरा तरीका है।
SIP के जरिए हम Mutual Funds में नियमित रूप से एक निश्चित अंतराल पर निश्चित की हुई रकम इन्वेस्ट कर सकते हैं यह निश्चित की हुई रकम ₹500 से शुरू होकर ₹10,000, ₹20000 या ₹1,00,00 कुछ भी हो सकती है।कितना और कब इन्वेस्ट करना है यह हमें पहले से निश्चित करना होता है जिसके कारण SIP एक इन्वेस्टमेंट का प्लांड तरीका बन जाता है।
SIP कैसे काम करती है?
SIP के काम करने का तरीका बहुत ही आसान होता है। सबसे पहले हमें यह निश्चित करना होता है कि हमें किस Mutual Fund स्कीम में किस निश्चित अंतराल पर मासिक, तिमाही या सालाना आधार पर (सामान्यतः हर महीने के) किसी निश्चित तारीख पर कितनी रकम को इन्वेस्ट करना है। उसके बाद आपके बैंक अकाउंट से हर महीने या उस निश्चित किए गए अंतराल की तारीख पर निश्चित की हुई रकम कट जाएगी और उस Mutual Fund स्कीम में इन्वेस्ट हो जाएगी। फिर आपको उस Mutual Fund स्कीम कि उस समय जो भी मार्केट वैल्यू होगी उस वैल्यू की यूनिट एलॉट हो जाएंगी जिसे NAV कहते हैं जब हम हर महीने या निश्चित अंतराल पर म्यूचुअल फंड में इन्वेस्ट करेंगे तो हमें हर उस समय में चल फंड की यूनिट एलॉट होंगी जोकि मार्केट के उस समय के उतार-चढ़ाव के कारण कम या ज्यादा NAV की होगी। इससे निवेशक को रुपये की औसत लागत (Rupee-Cost Averaging) का फायदा मिल जाता है। इसका मतलब है कि जब मार्केट बढ़ा हुआ हो तो इन्वेस्ट की हुई रकम से कम यूनिट मिलती हैं पर जब मार्केट गिरा हुआ हो तो उसी रकम से ज्यादा यूनिट मिल जाती हैं जिससे निवेशक को एवरेजिंग का फायदा मिल जाता है।
SIP के प्रकार
- रेगुलर एसआईपी (Regular SIP): SIP (systematic investment plan) एक निवेश स्कीम है, जिसमें आप पहले से तय म्यूचुअल फंड (Mutual Funds) स्कीम में एक खास अंतराल पर एक तय राशि निवेश करते हैं। निवेश का खास अंतराल या तो मासिक या त्रैमासिक आधार पर होते हैं. एक SIP पूरे निवेश के दौरान आपकी कुल निवेश लागत का औसत निकालता है।
- फ्लेक्सिबल एसआईपी (Flexible SIP): इसमें निवेशक पहली इंस्टॉलमेंट फिक्स कर देता है. बाद की इंस्टॉलमेंट फॉर्मूले के आधार पर कैलकुलेट की जाती हैं। इस तरह के सिप में बाजार की गिरावट में ज्यादा जबकि बाजार बढ़ने पर कम निवेश किया जाता है।
- टॉप-अप एसआईपी (Step-up SIP): इस तरह के सिप में पहली इंस्टॉलमेंट फिक्स होती है, बाद में नियमित अंतराल पर निवेश की रकम अपने आप बढ़ती रहती है। निवेश की रकम कितनी और कब बढ़ानी है यह निवेशक पहले ही तय कर लेता है।
- परपेचुअल एसआईपी (Perpetual SIP): SIP के जरिए निवेश में आप एक तय राशि मासिक, तिमाही या सालाना आधार पर निवेश करते हैं। सामान्य रूप से SIP एक अवधि के बाद बंद हो जाता है। हालांकि, परपेचुअल सिप के मामले में कोई तय अवधि नहीं होती है, आप जब तक चाहें चला सकते हैं। अपनी मर्जी से कभी भी फंडों से पैसा निकालने का भी विकल्प होता है।
- ट्रिगर एसआईपी (Trigger SIP): ट्रिगर SIP केवल उन निवेशकों के लिए बढ़िया है जो बाजार के उतार चढ़ाव से अच्छी तरह जानते हैं। इस प्रकार के SIP में यह जानना बहुत महत्वपूर्ण है Sell और Buy कब करना है। इस प्रकार के SIP के तहत निवेशक अपनी SIP प्रारंभ तिथि निर्धारित कर सकते हैं और बाजार का मूल्य घटने पर SIP रिडीम या स्विच कर सकते हैं।
SIP में इन्वेस्ट करने के फायदे
- छोटी रकम: SIP का सबसे पहला फायदा तो यह है कि इस प्लान में इन्वेस्ट करने के लिए आपको किसी बड़ी रकम की ज़रुरत नहीं होती और आप थोड़े पैसों में भी अपना निवेश शुरू कर सकते हैं। जैसे कि अगर आप SIP के जरिये हर महीने सिर्फ 500 रुपये भी इन्वेस्ट करते हैं तो वो 10 साल में ये पैसे आपको अच्छा रिटर्न दे सकते हैं। ऐसा रिटर्न कम्पाउंडिंग की वजह से होता है। जो निवेशक मार्केट में ज्यादा रिस्क नहीं लेना चाहता वह एसआईपी से कम जोखिम पर निवेश कर सकता है।
- कम जोखिम: Mutual funds शेयर बाज़ार में निवेश करते हैं और इसलिए ही उनके निवेश में जोखिम भी रहता है। हालांकि, SIP में यह जोखिम कम हो जाता है, क्योंकि Mutual funds स्कीम के यूनिट समय-समय पर खरीदे जाते हैं। समय-समय पर जब बाज़ार में उछाल आता है तो निवेश की गयी SIP राशि से फंड के कम यूनिट खरीदते हैं या बाज़ार में गिरावट होने पर अधिक यूनिट खरीदते हैं। इस प्रकार आप SIP के माध्यम से एक ही राशि से कम और ज़्यादा यूनिट खरीदकर निवेश का औसत बेहतर कर पाते हैं और जोखिम को कम करते हैं।
- पावर ऑफ़ कंपाउंडिंग: पावर ऑफ कंपाउंडिंग (Power of Compounding) का अर्थ है कि SIP में लगातार निवेश से आपकी निवेश की हुई रकम बढ़ती है इसके तहत आपको उतना ही ज्यादा फायदा होगा, जितना अधिक समय तक आप निवेश किए रहेंगे। यानी आप जितनी जल्दी निवेश शुरू कर देंगे, आपको कंपाउंडिंग की ताकत उतना ही अधिक समझ आएगी। इतना ही नहीं, आप जितना जल्दी, जितना अधिक निवेश करेंगे, कंपाउंडिंग की वजह से वह पैसा उतना ही अधिक बढ़ेगा।
- अनुशासित निवेशक बनाता है: यदि आपके पास शेयर बाजार का बेहतर वित्तीय ज्ञान नहीं है, तो एक SIP अच्छा निवेश विकल्प हो सकता है। निवेश करने के लिए सही समय खोजने के लिए आपको अपना समय बाजार का विश्लेषण करने में लगाने की आवश्यकता नहीं है। SIP से, आपका पैसा स्वचालित रूप से आपके लिंक किए गए बैंक खाते से काट लिया जाता है और यह आपके Mutual Fund में निवेश कर दिया जाता है। इसलिए, आप आराम से बैठ सकते हैं।
- रुपये की औसत लागत (Rupee-Cost Averaging): रुपये की औसत लागतवो प्रकिया है जिसमें आप नियमित अंतराल पर एक निश्चित राशि का निवेश करते रहते हैं। यह बदले में यह सुनिश्चित करता है कि आप जब शेयर या यूनिट की कीमत कम होती है तब ज्यादा शेयर या यूनिट खरीदते हैं और वहीं, जब शेयर की कीमत बड़ी हुई होती है तब आप कम शेयर खरीदते है। एक निश्चित समय में निवेश करने से आप एक बहुत मुश्किल स्थिति से बच जाते है वह यह है कि निवेश करने के लिए सबसे अच्छा समय ढूँढने की कोशिश करना। रुपी कॉस्ट एवरेजिंग प्रभाव – आपकी यूनिट की लागत का एवरेज निकालती है और इसलिए आपके निवेश पर शॉर्ट-टर्म मार्केट में हो रहे उतार-चढ़ाव के परिणामों को कम करती है।
SIP में कैसे और कब लगाएं पैसा
SIP के रिटर्न पर नजर डालें तो निवेशकों को इसका असली फायदा लंबी अवधि में दिखता है.वहीं लंबी अवधि का नजरिया लेकर चलने पर आप बेहद छोटी रकम को बढ़ता हुआ भी देखते हैं। अगर आप म्यूचुअल फंड कैलकुलेटर की मदद लेंगे तो आपको पता चलेगा कि कैसे लंबी अवधि में छोटी रकम बड़ी संपत्ति में बदल जाती है. और इससे आपको बाजार में समय पर निवेश के फायदे साफ दिखते हैं। बाजार के सभी जानकार मानते हैं कि म्यूचुअल फंड्स में SIP के द्वारा जितनी जल्दी हो निवेश की शुरुआत कर देनी चाहिए। दरअसल युवावस्था में खर्च सीमित किए जा सकते हैं हालांकि जिम्मेदारी बढ़ने के साथ ये संभव नहीं होता।
SIP Calculator:
हर महीने 10,000/- रुपये 25 साल तक 10% अनुमानित रेट ऑफ रिटर्न से जमा करने पर आप 30 लाख रुपये जमा करते हैं। 25 साल बाद आपका फंड बढ़कर 1 करोड़ 33 लाख रुपये होगा. 20 प्रतिशत सालाना रिटर्न की बात करें तो यह फंड बढ़कर 3 करोड़ 24 लाख रुपये हो जाएगा।
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